Thursday 16 March 2017

यूपी में भगवा सलाम









भाजपा ने यूपी में कमल खिला दिया है। भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है। करीब चालीस साल बाद कोई पार्टी यूपी में ऐसी विशाल बहुमत हासिल करने में कामयाब रही है। भाजपा ने अपने दम पर 312 सीटें हासिल की, और जनता दल से गठबंधन के बाद सीटों की संख्या 325 पहुंच गई। सपा और कांग्रेस के गठबंधन को 54, बसपा को 19 और अन्य को 18 सीटें मिली।





सपा, कांग्रेस और बसपा को इससे ज्यादा सीटें तो एग्जिट पोल में ही मिल रही थी। टुडेज चाणक्य के एग्जिट पोल लगभग सटीक रहे। भाजपा को उसमे 285, सपा और कांग्रेस के गठबंधन को 88 और बसपा को 27 सीटों का अनुमान था।  कुछ जानकार तो यह भी कह रहे थे कि हाथी एग्जिट पोल्स को कुचल देगा। परिणाम आते ही मोदी लहर में सब उड़ गए। 



जानते हैं क्या रहे चुनाव के समीकरण-




बीजेपी

बीजेपी ने शुरू से ही चुनाव प्रचार में पूरी जान फूंक दी थी। पीएम मोदी ने गली-गली घूम चुनाव प्रचार करे। ताबड़तोड़ रैलियां की। नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दे जो बीजेपी को डुबा और बना सकते थे, उसमें लोगों ने विश्वास दिखाया। मोदी ने नोटबंदी में ऐसा दिखाया कि नोटबंदी से गरीबों और किसानों को कोई तकलीफ नहीं होगी। तकलीफ सिर्फ भ्रष्टाचारियों को होगी। वहीँ सर्जिकल स्ट्राइक पर भी लोगों का भरपूर समर्थन मोदी को मिला। गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी और क़र्ज़ माफ़ी ने किसानों का ध्यान आकर्षित किया। उज्जवला योजना में फ्री सिलिंडर मिलने से बीजेपी को महिलाओं का भी भरपूर साथ मिला। अन्य मुद्दे भी बीजेपी के पक्ष में गए। दिल्ली और बिहार में ज़बरदस्त हार का बदला यहां पीएम मोदी ने पूरा कर लिया।





सपा और कांग्रेस गठबंधन

सपा में चली पिता-चाचा और बेटे की लड़ाई में सपा ने अपना ही नुकसान किया। सपा का परंपरागत वोटर उनका दामन छोड़ बीजेपी में चला गया। वहीं जल्दबाज़ी में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया। राहुल गांधी और अखिलेश ने  हर चुनावी रैली में मोदी को घेरा। अपना कुछ नया कहा नहीं जिसकी वजह से वोटर सपा से दूर चला गया। कहीं कहीं लोग सपा की परिवारवाद की राजनीति से मुक्ति पाना चाहते थे। अगर अखिलेश अगले विधानसभा चुनाव में सच में इन सबसे खुद को अलग करना चाहते हैं तो शुन्य से शुरु करें। 




बसपा

मायावती का इतना बुरा समय शायद पहले कभी था। पार्टी मात्र 19 सीटों पर ही सिमट गई। बसपा टक्कर नहीं दे पायेगी यह पहले से ही लग रहा था। हाँ, हालत इतनी ख़राब होगी यह भी नहीं सोचा था। दलितों को सिर्फ वोट बैंक बनाकर चलने की रणनीति का हश्र बसपा झेल रही है। एक दलित के मुख्यमंत्री बनने से जो स्वाभिमान मिलना था वो दलितों को मिल गया था। अब उसके आगे क्या? सामाजिक बदलाव के लिए जहां बसपा को कोई बड़ा जनांदोलन चलाना चाहिए था वहां बसपा सिर्फ चुनाव दर चुनाव जीतने की रणनीति ही बनाती रही। जहां देश का प्रधानमंत्री गली-गली प्रचार कर रहा था, बसपा सुप्रीमों ने सालों से अपने वोटरों के बीच जाना ही छोड़ दिया है। जो हुआ वह होना ही था। मायावती ने उतनी रैली करना भी ज़रूरी नहीं समझा जितनी उन्हें करनी चाहिए थी। सारा समय उन्होंने मोदी और बीजेपी को कोसते हुए गुज़ारा। 








देवांग मैत्रे

UP chunav: इस बार फिर होगा यूपी में भगवा सलाम?

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