Friday 4 May 2018

एक बेहतरीन पहल : हर वीकेंड किसानों की मदद करना है इन युवाओं की हॉबी









आज देश के युवा आईआईटी या आईआईएम में जाकर अपना करियर बनाना चाहते हैं। आईएएस अफसर बनाना चाहते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि कुछ बड़ाबन कर देश की सेवा करना चाहते हैं। फ़ौज में तो युवा देश के लिए कुछ कर भी रहे है पर बाकि का पता नहीं। लेकिन सवाल यह है कि क्या फ़ौज में जाकर ही या आईएएस अफसर बन कर ही देश और समाज के लिए कुछ किया जा सकता है?







हमारे देश में 1960 के दशक में हुई हरित क्रांति एक नई लहर लेकर आई थी। लेकिन हाल के वर्षों  में देश में कृषि की ऐसी बुरी स्थिति हुई है कि अब कोई शायद ही कृषि को दिल से आजीविका का साधन बनाना चाहता हो। तो क्या फिर से हमें एक नई हरित क्रांति की ज़रूरत है? क्या जैसी पहल हरीश श्रीनिवासन ने की है वैसी कोशिश हमें पूरे भारत में नहीं करनी चाहिए? पिछले 10 सालों में बेमौसम बरसात ने किसानों की फसल बर्बाद की और उनको आत्महत्या करने पर मजबूर भी किया। ऐसे में इस देश में द वीकेंड एग्रीकल्चरिस्टजैसे और संस्थओं को ज़रूरत है। आईये जानते हैं इनके बेहतरीन काम के बारे में:






मिलिए 29 वर्षीय हरीश श्रीनिवासन से जो ‘’द वीकेंड एग्रीकल्चरिस्ट’’ के संस्थापक हैं और वर्तुसा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई में वरिष्ट सलाहकार भी हैं। वह पिछले 3 साल से गरीब किसानों की मदद कर रहे है,अब तक उनके साथ 5000 स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं। जिसमे आईटी प्रोफेशनल, डॉक्टर, टीचर, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र व व्यापारी शामिल हैं, जिनका मकसद है वीकेंड पर गरीब किसानों को मुफ्त मजदूरी देना। हरीश ने बताया- मेरा मकसद साफ़ है मैं उन गरीब किसानों को मुफ्त में मजदूरी देता हूँ जो पैसे देकर मजदूर रख नहीं सकते।






चेन्नई की एक कंपनी कोरलेड इंटरैक्टिव के SEO एसोसिएट जे. सतीश कुमार जो स्वयंसेवको के कोर ग्रुप में शामिल है, कहते है- भले ही हमारा पालन पोषण शहर में हुआ हो पर आज भी हमारी जड़े खेती से जुड़ी है। हमारी पिछली पीढ़ी के ज्यादातर लोग किसान ही थे और हम कही न कही किसानी से जुड़े हुए है। मैं 18 महीने पहले इस इवेंट से जुड़ा था और तबसे इनके साथ ही काम कर रहा हूँ। उन्हें जो भी मदद चाहिए हम उनको देते है जिसमें मिट्टी की तैयारी करना, बीज रोपण, प्रत्यारोपण, निराई व कटाई शामिल है। सब्जियां जैसे बैगन, मिर्च व टमाटर आसानी से उगा सकते है। हम स्वयंसेवको को जैविक सब्ज़ियां उगाना सिखा रहे है।






हरीश के लिए प्रेरणा रहा मूंदराम उल्लगा पोर नाम का उपन्यास, जिसका हिंदी में मतलब तीसरा विश्व युद्ध होता है और जिसके लेखक हैं तमिल कवि और गीतकार वैरामुथु। हरीश ने बताया कि मेरा खेती से कोई नाता नहीं है पर मैंने जब किसानों की दुर्दशा देखी तो सोचा कि हम सिर्फ सरकार पर दोष नहीं मढ़ते रह सकते। यह इस समस्या का हल नहीं है। कितने दुःख की बात है जो किसान हमें खाना देते है वो खुद भूखे रहते हैं। इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है की किसानों को सिर्फ आत्महत्या ही आखरी विकल्प दिखता है। हमने कुछ बड़े और पढ़े लिखे किसानों से सीखा, हम फिर हफ्ते दर हफ्ते गाँव जाते रहे जिससे उनको लगा हम वाकई में उनकी मदद करना चाहते है। इस ग्रुप में 20-30 की उम्र के स्वयंसेवक है और कुछ बड़ी उम्र के भी हैं जो अपने परिवार के साथ आते हैं। इनको अपने खर्चे पर ही स्कूल या खेतों में ही सोना पड़ता है।






चेन्नई में थिरूवल्लूर जिले के अलाथुर के छोटे से गाँव में 45 वर्षीय टीआर सारथी पहले खेती करते थे पर 6 साल से ईट बनाने के काम में लग गये थे क्योंकि इसमें ज्यादा मुनाफा है। वह कहते हैं ''मैंने मजबूरी में खेतीबाड़ी छोड़ी थी पर आज मुझे खुशी है कि मैं अपने भाईयों की मदद कर पा रहा हूँ''।






25 वर्षीय प्राची घटवाल गोवा की रहने वाली है जो क्रिएटिव कैप्सूल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में मोबाइल ऐप डेवलपर है, वो वीकेंड एग्रीकल्चरइस्ट की सदस्य रह चुकी हैं, उन्होंने बताया- हम लोग अब एक नया मोबाइल ऐप बना रहें है जो आसानी से स्वयंसेवको का पंजीकरण करने में सक्षम होगा। यह ग्रुप सिर्फ फ्री सेवा ही नहीं देता बल्कि इसमें सलाहकारों को भी रखा गया है जिससे वे किसानों को खेती के बारे में पढ़ा सके जिससे खेती अच्छी हो सके। हरीश ने बताया- पिछले 30-40 साल में किसानों को केमिकल उर्वरक व कीटनाशक के भरोसे ही खेती करनी पड़ती थी और उन्हें पता भी नहीं होता था कि यह बाद में कितना खतरनाक हो सकता है। गरीब किसानों को बिचौलिए पर निर्भर रहना पड़ता था जो किसानों से 5-6 रुपये में लेकर उसी को शहर में 40-50 रुपये में बेचते थे। हम अब इस पर काम कर रहे रहें है जिससे कि किसान और उपभोगता के बीच डायरेक्ट लिंक बन सके। आज हमें हमारे काम के लिए सराहना मिलती है जो कि अपने आप में एक बड़ी बात है। इससे ज्यादा से ज्यादा युवा हमसे जुड़ रहे है।


 
साभार- रेडिफ.कॉम
प्रस्तुति- देवांग मैत्रे

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