Credits - DNA India |
उत्तर प्रदेश में चुनाव होने को हैं। चुनावी माहौल से यूपी सज चुका है। यूपी चुनाव के लिए पीएम मोदी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। इसके साथ ही एक जो चीज़ रह गयी है वह है नेताओं का पार्टी से आना-जाना। यूपी के मुख्यमंत्री और भाजपा के फायर ब्रांड लीडर योगी आदित्यनाथ भी कोई कसर नहीं छोड़े हैं इस बार भी फैसला अपनी और घुमाने को। चुनाव सिर पर आते ही कई नौकरी भर्तियां निकल गयी हैं। इसके अलावा योगी एक लाख छात्रों को स्मार्टफोन और टेबलेट भी देने की घोषणा कर चुके हैं, जो शायद मिल भी जाए। वहीँ विपक्षी पार्टियां भी अपने-अपने तरीके आजमा रहीं हैं।
कुछ दिनों पहले वापस लिए गए कृषि कानून
को लेकर भाजपा में ही एक तबका मानता है कि यह नहीं किया जाना था। इसके पीछे वजह यह
है कि चुनाव नज़दीक आते ही आप बैकफुट चले गए और कृषि कानून वापस लेना पड़ा। अगर यह करके
आप जीत भी गए तो "यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है" वाली बात हो
जाएगी। भाजपा के साथ-साथ आरएसएस का भी मानना है कि इससे ब्रांड मोदी की इमेज टूटी
है और अब जगह-जगह ऐसे ही पीएम मोदी को धरने पर बैठकर झुकने को मजबूर किया जाएगा।
टिकैत डालेंगे
वेस्ट यूपी में अड़ंगा?
Credits - Outlook India |
कृषि कानून को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद
करने वाले राकेश टिकैत भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी से खतरे की घंटी बने हैं। कुछ
जानकार मानते हैं कि 26 जनवरी की लाल किला हिंसा के बाद टिकैत का रोना
किसान आंदोलन को दोबारा एक नई धार दे गया था। टिकैत की छवि ऐसी बन गई है जैसी कभी
उनके पिता बाबा महेंद्र सिंह टिकैत जी की हुईं करा करती थी। इसी सब आंदोलन के बीच
पूर्व सांसद और राष्ट्रीय लोकदल सुप्रीमो जयंत चौधरी भी खूब एक्टिव दिखे थे,
योगी-मोदी
सरकार पर काफी हमलावर भी थे। अब जब किसान आंदोलन सफल हो गया है तो जयंत भी अब
टिकैत को अपने पाले में लेने की पूरी कोशिश में हैं। वहीं
यूपी चुनाव में टिकैत की गिनती किंग मेकर में की जाने लगी है।
अखिलेश-जयंत
फैक्टर कितना असरदार?
Credits - ABP Live |
यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और
जयंत चौधरी वेस्ट यूपी से हाथ मिला चुके हैं, जिससे भाजपा का
बैकफुट पर जाना लाज़मी है। समाजवादी पार्टी (सपा) में जो समस्या 2017 के
शुरू में हुई थी वह अब उस स्थिति में नहीं है। वहीं अगर कांग्रेस से गठबंधन करने
की बात आती भी है तो उसके रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं। इस सब के बीच सपा के कुछ
के कद्दावर नेताओं पर इनकम टैक्स की रेड से साफ़ जाहिर है कि यह कहीं न कहीं
राजनीति से प्रेरित है। कोरोना की दूसरी लहर में चारों खाने चित योगी-मोदी सरकार
पर भी सपा काफी हमलावर थी जिससे लोगों को लगने लगा कि बीजेपी का विकल्प सपा ही है।
मायावती को विलय
की ज़रूरत या मजबूरी?
Credits - Lokmat |
मायावती के लिए यह शायद सबसे बुरा दौर
होगा। 2016-17 को इससे कहीं अधिक अच्छा दौर कहना ठीक होगा,
जब
पार्टी 19 सीटें तो ले आई थी। मायावती ने कुछ मौकों पर पीएम मोदी की कुछ बातों
से सहमति भी जताई है जिससे ऐसे कयास लग रहे हैं कि उनका भाजपा के साथ जाना उनके और
उनकी पार्टी के लिए बेहद ज़रूरी है। मायावती जब सीएम होती थीं उनपर भ्रष्टाचार के
बहुत आरोप लगते थे, इसी के चलते वह अब कुछ बोलने से बचती हैं। उनका
परंपरागत वोटर भी अब उनसे दूर रहना चाहता है। 2016 की नोटबंदी के
बाद मायावती जिस तरह से मोदी सरकार पर बरसती थीं, शायद अब उनके
लिए ऐसा करना बिलकुल भी ठीक न होगा। वहीं दलित वोटरों के सहारे उनकी जो इमेज थी वह
अब चंद्रशेखर आजाद रावण ने ज्यादा अपनी और कर ली है जिससे उनका हाशिए पर चले जाना
और भी बढ़ गया है। उनके लिए आज के और 2016-17 के हालात कमोबेश
एक ही हैं। यूपी चुनाव के
लिए मायावती को अपने रूठे हुए काडर बेस को फिर से खड़ा करने की जरूरत है।
क्या फिर आएगी
भाजपा?
Credits - Jagran Josh |
यूपी भाजपा कई मुद्दों पर अपने ही वोटर
और बाकि लोगों के सवालों से घिरी है। चाहे वह कोरोना की दूसरी लहर में योगी सरकार
का घुटने टेकना, किसान आंदोलन को ऐसे बताना जैसे वह हाईजैक हो
गया हो, यह सब अब उनके विकास के अजेंडे की पोल खोलता है। जगहों के नाम बदल
देने को विकास समझ लिया गया है। राम मंदिर बनने के फैसले को लेकर बीजेपी उत्साह
में है कि उसे आने वाले चुनाव में फायदा ज़रूर होगा। पीएम मोदी भी अपने कैंपेनिंग
अवतार में हैं जिसके लिए वह जाने जाते हैं। चुनाव के समय में पीएम मोदी को आगे कर
देने का ट्रेंड भाजपा में आज भी बरकरार है और आगे भी रहेगा। सपा ने 2012-13
में
जब छात्रों को लैपटॉप बांटे थे तब भाजपा ने उनपर निशाना साधा और अब भाजपा की ओर से
छात्रों को 1 लाख स्मार्टफोन और टेबलेट्स बांटने की बात उठी
है। यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सेमीफइनल की तरह है
क्योंकि यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं जिससे पिक्चर कुछ ही महीनों
में साफ़ हो जाएगी। कई ओपिनियन पोल में भाजपा की सरकार
बनती दिख रही है, जो उनके लिए थोड़े सुकून की बात है। लेकिन यह
नहीं भूलना चाहिए कि ओपिनियन पोल के लिए सैंपल साइज पूरी यूपी के मूड को नापने के
लिए काफी नहीं है।
No comments:
Post a Comment